पिप्पली के फायदे, नुकसान और प्रयोग

आयुर्वेद में पिप्पली के कच्चे फलों को औषधीय रूप में प्रयोग करते है। पिप्पली पाचन को बढ़ाने वाली, वीर्य को बढ़ाने वाली, पाक से मधुर, चरपरी, हलकी रेचक, और खांसी, पेट रोग, ज्वर, कोढ़, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, आमवात आदि को नष्ट करने वाली होती है।

पिप्पली या पिप्पर, पाइपर लांगम piper longum नामक पौधे की बेल से प्राप्त सूखे, अपरिपक्व, कैटकिन-जैसे catkin-like फल होते हैं। पिप्पल के फल और जड़ जिसे पिप्पलामूल Pippalamula कहा जाता है, आयुर्वेद में औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे एक मसाले की तरह भी प्रयोग किया जाता है।

पिप्पली की लता पतली, बारहमासी, खुशबूदार होती है तथा भारत के गर्म क्षेत्रों, केंद्रीय हिमालय से असम, पश्चिम बंगाल की पहाड़ियों, पश्चिमी घाट के सदाहरित जंगलों तक पायी जाती है। पिप्पली की नार्थ-ईस्ट North-east और दक्षिण भारत में खेती भी की जाती है।

pippali
“Piper longum”. Licensed under CC BY-SA 3.0 via Commons

आयुर्वेद में पिप्पली के कच्चे फलों को औषधीय रूप में प्रयोग करते है। पिप्पली पाचन को बढ़ाने वाली, वीर्य को बढ़ाने वाली, पाक से मधुर, चरपरी, हलकी रेचक, और खांसी, पेट रोग, ज्वर, कोढ़, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, आमवात आदि को नष्ट करने वाली होती है। ताज़ी पिप्पली स्निग्ध, शीतल, भारी, मधुर और पित्तशामक होती है जबकि सूखी पिप्पली पित्त को बढ़ाने वाली होती है। शहद के साथ पिप्पली का सेवन मेद को कम करने वाला और वीर्य को बढ़ाने का काम करता है। यह कफ, ज्वर, मन्दाग्नि, को नष्ट करता है। पुराने ज्वर में पिप्पली को गुड़ के साथ खाने से खांसी, अजीर्ण, हृदय के रोग, पीलिया, कृमि आदि नष्ट होते हैं।

पिप्पली के दो प्रकार हैं छोटी और बड़ी। छोटी पिप्पली हमारे देश में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है जबकि बड़ी पिप्पली मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर में पायी जाती है।

पिप्पली के बारे में जानकारी | Information about Pippali in Hindi

पिप्पली एक गुल्म जाति की लता है। इसमें जो फल लगते है वह देखने में शहतूत जैसे दिखते हैं, उन्हें पिप्पली या पीपरि के नाम से जाना जाता है। पौधे के पत्ते पान की तरह नुकीले और छोटे होते हैं। पत्ते बहुत ही कोमल और चिकने होते है। लता में पुष्प शिशिर में लगते हैं और वसंत तक फल पक जाते हैं।

  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: Pippali फल और मूल (पिप्पलीमूल)।
  • पौधे का प्रकार: गुल्म जाति की लता।
  • वितरण Distribution: नेपाल, नैनीताल, इत्यादि प्रदेशों की तराइयों में; मालवा तथा आस-पास के प्रदेश। बिहार, मगध, रूहेलखंड, के वनों में; सिंगापुर।

पर्यावास Habitat: पत्थर, रेत, तथा चूर्णमिश्रित भूमि।

पिप्पली का पौधा हर भूमि में उग सकता है लेकिन उनमे उपयुक्त भूमि में पायी जानी वाली पिप्पली जितनी तीव्रता नहीं पाई जाती। मगध में पाई जानी पिप्पली को मागधी कहते है और उनका उल्लेख आयुर्वेद में अधिक मिलता है।

  • विशेषता: स्वाद: कड़वा, रंग: भूरा;
  • हानिप्रद: सिर को;
  • हानिनिवारक: गोंद बबूल, चन्दन।
  • भेद: पिप्पली चार प्रकार की हैं, पिप्पली, गजपिप्पली, सैंहली, और वनपिप्पली।
  • पिप्पली: मागधी पिप्पली, मगध प्रदेश से।
  • गजपिप्पली: गजपिप्पली लम्बी, मोती, और तीक्ष्ण होती है। इसका आगे का भाग मोटा होता है। इसका चूर्ण सफ़ेद होता है।
  • सैंहली: जहाजी पिप्पल, सिंगापुर, जंजीवार द्वीप से।
  • वनपिप्पली: वंगप्रदेश के क्षेत्रों से।

स्थानीय नाम / Synonyms

Sanskrit: Kana, Magadhi, Magadha, Krishna पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदेही, चपला, कणा, उपकुल्या, ऊशणा, शौंडी, कोला, तीक्ष्णतुंडूला

  • Assamese: Pippali
  • Bengali: Pipul पिपुल
  • English: Long Pepper
  • Gujrati: Lindi Peeper, Pipali लिंडीपीपल
  • Hindi: Pipar पीपरि
  • Kannada: Hippali हिप्पली
  • Malayalam: Pippali
  • Marathi: Pimpali, Lendi Pimpali पिम्पठ्ठी
  • Oriya: Pipali, Pippali
  • Punjabi: Magh, Magh Pipali
  • Tamil: Arisi Tippali, Thippili
  • Telugu: Pippalu
  • Urdu: Filfil Daraz फिलफिल दराज़
  • Latin name लैटिन: पाइपर लॉन्गम
  • Family परिवार: Piperaceae पिपरेसिये

पिप्पली के आयुर्वेदिक गुण और कर्म | Pippali Properties in Hindi

  • रस (taste on tongue): मधुर, कटु , तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): अनुउष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर
  • कर्म: दीपन, हृदय, कफहर, रुच्य, त्रिदोषहर, वातहर, वृष्य, रसायन, रेचन।
  • आयुर्वेदिक औषधियां Ayurvedic medicines containing Pippali: गुड़पिप्पली, पिप्पलीखंड, पिप्प्ल्यासव, अमृतारिष्ट, अयासकृति, च्यवनप्राश, अवलेह, अश्वगंधारिष्ट, कुमारीअसाव, कैशोर गुग्गुलु
  • पिप्पली के औषधीय उपयोग Therapeutic Uses of Pippali: शूल, अर्श piles, गुल्म, हिक्का रोग, कास, कृमि intestinal parasites, कषाय, कुष्ठ leprosy, प्लीहा रोग, प्रमेह, श्वास, तृष्णा excessive thirst, उदर रोग diseases of abdomen, आमवात, आमदोष, ज्वर fever।
  • औषधीय सेवन की मात्रा therapeutic dosage of Pippali: १-३ ग्राम।
  • पिप्पली का बहुत दिनों तक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

पीपल – पिप्पली के सेवन के लाभ | Health benefits if Pippali in Hindi

  • पिप्पली का सेवन शरीर में गर्मी heating पैदा करता है।
  • इसका सेवन आँतों में गर्मी पैदा करता है।
  • यह सर्दी के दोषों को नष्ट करती है।
  • यह गैस carminative को दूर करने वाली और पाचन को बढ़ाने वाली होती है।
  • यह मृदु विरेचक laxative है।
  • पिप्पली का चूर्ण + शहद, के साथ चौघ, अस्थमा, आवाज़ का बैठना, हिक्का और नींद न आना आदि में लाभ करता है। Powdered long pepper administered with honey relieves cough, asthma, hoarseness, hiccup and sleeplessness.
  • पुरानी पिप्पली, नई पिप्पली से अधिक उपयोगी होती है।
  • पिप्पली गर्भ-रोधक, मूत्रल diuretic, शक्तिदायक, और मासिक धर्म regulating menstruation को नियमित करती है।

पिप्पली का औषधीय उपयोग | Medicinal Uses of Pippali in Hindi

नींद न आना insomnia

पिप्पलामूल के चूर्ण को १-३ ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ (गुड़ की मात्रा सदैव पिप्पली की मात्रा से दोगुनी होनी चाहिए) मिलाकर दिन में दो बार लेना चाहिए।

जुखाम, खांसी, आवाज़ बैठने पर cough, coryza, cold

पिप्पली + पिप्पली मूल + काली मिर्च + सोंठ (बराबर मात्रा में) में मिलाकर २ ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।

पिप्पली चूर्ण १ ग्राम + शहद (दोगुना) को मिलाकर चाटने से कफ कम होता है और सर्दी से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है।

पिप्पली मूल चूर्ण ३ ग्राम + शहद को दिन बार चाट कर लेने से लाभ होता है।

अस्थमा

पिप्पली चूर्ण + काली मिर्च + सोंठ (बराबर मात्रा में) मिलाकर दिन में तीन बार लिया जाता है।

पुरानी खांसी

पिप्पली + पिप्पली मूल + बहेड़ा + सोंठ (बराबर मात्रा में) में मिलाकर ३ ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से लाभ होता है।

हृदय रोग Diseases of heart

पिप्पली मूल + छोटी इलाइची (बराबर मात्रा में) में मिलाकर ३ ग्राम की मात्रा में घी के साथ दिन में दो बार लेने से लाभ होता है।

पिप्पली चूर्ण १ ग्राम + शहद (दोगुना) को मिलाकर सुबह चाटने से ह्रदय रोग में लाभ होता है। यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है।

हिक्का रोग, हिचकी hikka rog, hiccups

पिप्पली चूर्ण को पानी के साथ लेने से लाभ होता है।

पिप्पली चूर्ण + मुलेठी (बराबर मात्रा में) + मिश्री (दोनों चूर्ण के बराबर मात्रा में ) में मिलाकर, ३ ग्राम की मात्रा में बिजौरे निम्बू के रस के डाल कर पीने से लाभ होता है।

कास, बार-बार आने वाला ज्वर kasa, Visham jwar

पिप्पली मूल चूर्ण ३ ग्राम + शहद ५ ग्राम + घी २ ग्राम को मिलाकर दिन में तीन बार चाट कर लेने से लाभ होता है।

मोटापा obesity

पिप्पली चूर्ण २ ग्राम + शहद (दोगुना) को मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से मोटापा कम होता है।

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