हींग Asafoetida उपयोग, लाभ और सावधानियां

हींग Asafoetida,को तो सभी जानते हैं। इसे बहुत से भोज्य पदार्थों जो की गैस बनाते हैं, जैसे की दाल, पकौड़े, गोभी, बीन्स, आदि बनाते समय एक सामग्री के रूप प्रयोग करते हैं। इसे घरेलू उपचार के रूप में भी पाचन रोगों में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से अफारा दूर होता है। छोटे बच्चों में भी इसे पानी में घिस कर नाभी के आस-पास लगा देने से गैस, पेट का दर्द आदि दूर होते हैं।

hing ke upyog

हींग के पौधे कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। भारत में हींग को मुख्य रूप से अफगानिस्तान तथा फारस से आयात करते हैं। आयातित होने के कारण यह काफी महंगी होती है व उत्तम गुणवत्ता की हिंग मिल पाना भी आजकल मुश्किल है।

हींग, तेल और रालयुक्त गोंद है जिसे इंग्लिश में ओले-गम-रेसिन कहते हैं। हींग के पौधे की जड़ एवं तने पर चीरा लगाकर इस गोंद को प्राप्त करते हैं। हींग के पौधे पांच फुट तक ऊँचे हो सकते हैं। इनका तना कोमल होता है। पत्तियां कोमल, रोयेंदार, संयुक्त, 2-4 पक्षयुक्त होती हैं। फूलों का रंग पीला होता है और गाजर कुल के अन्य पौधों के तरह छतरी की तरह निकलते हैं। जड़ें गाजर की तरह कन्द होती हैं। इन कन्द रुपी जड़ों से 4-5 साल की आयु होने पर हींग को प्राप्त किया जाता है। हींग के फल अज्जूदान कहलाते हैं। पत्तो का भी साग बनाकर खाया जाता है।

हींग को प्राप्त करने के लिए, मार्च-अप्रैल में फूल आने के पहले, जड़ों के पास की मिट्टी को खुरच कर हटा लिया जाता है। इससे जड़ें बाहर दिखने लगती है। इसके बाद जड़ के कुछ ऊपर तने से पौधा पूरा काट दिया जाता है। कटे तल से सफ़ेद रंग का गाढ़ा स्राव निकलने लगता है। इस पर धूल-मिट्टी न जमे इसलिए इन्हें ढक दते हैं। कुछ दिनों के बाद, निकले पदार्थ को खुरच कर रख लेते हैं तथा दूसरा कट लगा देते हैं, जिससे नया निर्यास मिल सके। इस तरह कुछ महीने हींग को इकठ्ठा करते हैं जब तक स्राव होना बंद न हो जाए।

बाज़ार में कई प्रकार की हींग उपलब्ध है। इनमे से हीरा हींग सबसे उत्तम मानी जाती है। महंगी होने से बहुत से नकली और घटिया गुणवत्ता की हींग भी मार्किट में उपलब्ध है। दवा के रूप में उत्तम हिंग को कम मात्रा में प्रयोग करने से ही फायदा होता है।

सामान्य जानकारी

  1. वानस्पतिक नाम: Ferrula asafoetida, Ferula foetida (Bunge) Regel
  2. कुल (Family): छत्रक कुल
  3. औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: गोंद
  4. पौधे का प्रकार: पांच फुट तक के कोमल काण्ड वाले पौधे
  5. वितरण: कश्मीर, बालटिस्तान, अफगानिस्तान, तज़ाकिस्तान, उज्बेकिस्तान आदि
  6. पर्यावास: ठन्डे प्रदेश, मध्य एशिया, ईरान और अफगानिस्तान

हींग के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Ramatha, Sahasravedhi, Ramatta, Bhutnasan, Hingu, Sulansan, Bahleeka, Suraini
  2. हिन्दी: हींग Hing, Hingda
  3. अंग्रेजी: Asafoetida, Asafetida, Asant, Devil’s Dung, Gum Asafetida
  4. असमिया: Hin
  5. बंगाली: Hing
  6. गुजराती: Hing, Vagharni
  7. कन्नड़: Hing, Ingu
  8. मलयालम: Kayam
  9. मराठी: Hing, Hira, Hing
  10. उड़िया: Hengu, Hingu
  11. पंजाबी: Hing
  12. तमिल: Perungayam
  13. तेलुगु: Inguva
  14. उर्दू: Hitleet, Hing
  15. अरेबिक Arabic: Zallouh, Anjadan, Hilteet, Simagh-ul-mehroos
  16. यूरोप Europeans: Devil’s dung
  17. पर्शिया Persian: Angoza, Angzoo, Amma, Anksar, Nagoora, Nagsatgudha
  18. तुर्की Turkish: Şeytantersi (devil’s sweat), şeytan boku (devil’s shit) or şeytanotu (the devil’s herb)

हींग का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  1. किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  2. सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  3. सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  4. डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  5. क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  6. सबक्लास Subclass: Rosidae
  7. आर्डर Order: Apiales
  8. परिवार Family: एपिएसिए Apiaceae ⁄ Umbelliferae – गाजर परिवार
  9. जीनस Genus: फेरुला Ferula L – ferula
  10. प्रजाति Species: फेरुला एसाफोएटिडा Ferula assa-foetida L – asafetida

हींग के संघटक Phytochemicals

गोंद का हिस्सा Gum fraction 25%: Glucose, galactose, L-arabinose, rhamnose and glucuronic acid

राल Resins 40-64%: Ferulic acid esters (60%), free ferulic acid (1.3%), asaresinotannols and farnesiferols A, B and C, coumarin derivatives (e .g. umbelliferone), coumarin-sesquiterpene coinplexes (e.g . asacoumarin A and asacoumarin B). Free ferulic acid is converted to coumarin during dry distillation.

उड़नशील तेल Volatile oils: 3-17%. Sulfur containing compounds with disulfides as major components, various monoterpenes.

अलग – अलग फेरुला स्पीशीज के पौधों से प्राप्त हींग के संगठन एक समान नहीं होते।

पौष्टिकता

  1. कार्बोहायड्रेट 68%
  2. मिनरल 7%
  3. प्रोटीन 4%
  4. फाइबर 4%
  5. नमी 16%

हींग के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

हींग स्वाद में कटु गुण में लघु, चिकनी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। यह पित्त वर्धक है और पाचन को तेज करती है।

  • रस (taste on tongue): कटु
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • दोष पर असर: वात और कफ को संतुलित करना व पित्त वर्धक

यह कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

प्रधान कर्म

  1. अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
  2. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  3. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  4. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  5. पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
  6. छेदन: द्रव्य जो श्वास नलिका, फुफ्फुस, कंठ से लगे मलको बलपूर्वक निकाल दे।

आयुर्वेदिक दवाएं

  1. हिंग्वाष्टक चूर्ण
  2. हिंगवादि चूर्ण
  3. हिन्गुवचादि चूर्ण

मुख्य रोग जिनमें हींग का प्रयोग लाभप्रद है:

  1. अग्निमांद्य
  2. आध्मान
  3. अनाह
  4. गुल्म
  5. शूलरोग
  6. उदर / पेट रोग
  7. हृदय रोग
  8. कृमिरोग

हींग के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Asafoetida in Hindi

हींग बहुत वीर्यवान तेज गंध युक्त निर्यास है। इसमें एक विशिष्ट गंध होती है जो की इसमें उपस्थित डाईसल्फाइड के कारण होती है। ऐसा माना जाता है की कच्चा हींग उलटी लाता है इस लिए इसे घी में भून कर प्रयोग करते हैं। यह शरीर में गर्मी बढ़ाने वाला मसाला है। खाने में इसे डालने का मुख्य कारण पाचन में गैस को न बनने देना है। यह आक्षेपनिवारक, आध्माननाशक, बल्य, मृदु विरेचक, मूत्रल, रजःप्रवर्तक, कृमिघ्न और वृष्य neuroprotective, antispasmodic, antiulcerogenic, hepatoprotective, hypotensive, relaxant, nephroprotective, antiviral, antifungal, chemopreventive, antidiabetic, antioxidant है।

हींग का अधिक मात्रा में सेवन नुकसान करता है। यह शरीर का ताप तो नहीं बढ़ाता परन्तु धातुओं में उष्मा बढ़ा देता है। जहाँ कम मात्रा में यह पाचन में सहयोगी है, वहीँ इसकी अधिक मात्रा पाचन की दुर्बलता, लहसुन की तरह वाली डकार, शरीर में जलन, पेट में जलन, एसिडिटी, अतिसार, पेशाब में जलन आदि दिक्कतें पैदा करता है।

हींग का तेल वातनाशक है। यह पेट में दर्द, गैस आदि में राहत देता है। आमवात में सामान्य तेल के साथ मिलाकर इससे मालिश करते हैं। हिंग के तेल के सेब्वन से मासिक में अधिक रक्त जाता है। इसे आंतरिक रूप से लेने की मात्रा आधा बूँद से लेकर तीन बूँद है। इसे बताशे पर डाल कर लेते हैं।

हींग के पित्त वर्धक गुण से इसे पित्त की कमी से होने वाले अपच में, वायुनाशक होने से आध्मान-शूल, ग्रहणीशूल में, और कफनाशक होने से पुराने कफ रोग व अस्थमा में प्रयोग करते हैं।

अपच

हींग को तड़के के रूप में प्रयोग करें।

खांसी, टीबी

शहद के साथ हींग को चाट कर लें।

जहरीले कीट, बिच्छू, ततैया आदि काट लेना

प्रभावित जगह पर हींग का लेप करें।

पुराना घाव

हींग को नीम के पत्तों के साथ पीसकर लेप लगाएं।

हिस्टीरिया

हींग सुंघाने से लाभ होता है।

सांस की तकलीफ

पानी में घोल कर हींग का सेवन करें।

हृदय के लिए

इसके प्रयोग से हृदय को ताकत मिलती है, थक्का नहीं जमता और रक्त संचार ठीक होता है।

पेट में दर्द, गैस, अफारा

  1. एक रत्ती हींग को गर्म पानी के साथ निगल जाएँ। अथवा
  2. भुनी हींग को सेंध नामक के साथ कम मात्रा में लें। अथवा
  3. घी में भुनी हींग दो चुटकी को अजवाइन, हरीतकी, काला नमक (प्रत्येक 2 ग्राम) के साथ मिला बारीक़ चूर्ण बना कर रख लें। इसे खाना खाने के बाद चौथाई-आधा चम्मच लें। अथवा
  4. हींग को आधा चम्मच अजवाइन के साथ गर्म पानी के साथ लें। अथवा
  5. हिंग्वाष्टक चूर्ण का सेवन करें। अथवा
  6. हींग को सिरके के साथ चाट कर लें। अथवा
  7. हींग चुटकी भर, अदरक रस आधा चम्मच, नीबू एक चम्मच, काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर गर्म पानी के साथ लें।
  8. अथवा नाभि के आस-पास पेस्ट रूप में लगाएं।

भूख न लगना

भुनी हींग को 1 रत्ती की मात्रा में पिप्पली के चूर्ण और शहद के साथ लें।

हींग की औषधीय मात्रा

हींग को लेने की औषधीय मात्रा 125-500 mg है। अधिकतर मामलों में 250mg मात्रा पर्याप्त होती है। अधिक मात्रा में इसे लेने से पित्त की अधिकता, पेट की जलन, सिर में दर्द आदि समस्याएं हो सकती हैं।

यह मात्रा उत्तम गुणवत्ता की हींग के लिए है। बाजार में जो तड़के वाली हींग मिलती है, उसमें पचास प्रतिशत से अधिक आटा, खाने वाला गोंद और बहुत कम हींग होती है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाती है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. रक्तपित्त में इसका अधिक सेवन समस्या को गंभीर कर सकता है।
  6. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  7. इससे मासिक स्राव को बढ़ाने वाला और गर्भनाशक माना गया है।
  8. स्तनपान के दौरान भी इसका सेवन दवा के रूप में न करें क्योंकि दूध से बच्चे में जाने पर यह methaemoglobinaemia कर सकता है।
  9. बच्चों को आंतरिक प्रयोग के लिए न दें। बाह्य रूप से पानी में घुला कर लगा सकते हैं।
  10. शिशुओं को देने पर यह हीमोग्लोबिन को ऑक्सीडाइज कर देता है जिससे methaemoglobinaemia हो जाता है।
  11. यदि सर्जरी कराने वाले हैं, तो इसका सेवन २ सप्ताह पहले से बंद कर दें क्योंकि इसका सेवन शरीर में गर्मी बढ़ाता हैं खून पतला करता है, थक्के बनना रोकता है और इन सबसे खून के अधिक बहने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  12. ऐसा कोई भी रोग जिसमें पेट में या शरीर में जलन होती हो, में इसका सेवन दवा रूप में न करें।
  13. हिंग उच्चरक्तचाप, एंटीप्लेटलेट और एंटीकोएगुलेंट दवाओं के साथ ड्रग इंटरेक्शन संभव है। इसलिए इन सभी मामलों में सावधानी रखें।
  14. हींग का बाह्य प्रयोग त्वचा को लाल कर सकता है। यह dermatitis के लक्षण उत्पन्न कर सकता है।
  15. चूहों में किये गए परीक्षण में हींग के सेवन से कमजोर sister chromatid exchange-inducing effect स्पर्म के बनने के दौरान देखा गया। यह क्रोमोसोमल को डैमेज करने वाला असर हींग में मौजूद coumarin के कारण होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.