फीलपाँव / श्लीपद Lymphatic Filariasis in Hindi

फीलपाँव जिसे श्लीपद elephantiasis भी कहा जाता है, एक सूक्ष्म परजीवी, फाइलेरिया कीड़े (धागे की तरह कीड़े) Wuchereria bancrofti, Brugia malayi or B. timori. के कारण होने वाली बीमारी है। यह परजीवी कीड़े मनुष्य के केवल लसीका प्रणाली lymph system में रहते हैं।

लसीका प्रणाली मानव शरीर में संक्रमण से बचाव तथा तरल पदार्थों के संतुलन को बनाए रखने के लिए होता है। फीलपाँव उष्णकटिबंधीय उप-उष्णकटिबंधीय tropics and sub-tropics देशों जैसे की एशिया, अफ्रीका, पश्चिमी प्रशांत के देशों में, कैरेबियन और दक्षिण अमेरिका आदि देशों के लोगों को प्रभावित करता है।

आयुर्वेद में इसे श्लीपद कहा जाता है। यह कफ-वात प्रधान रोग है। इसमें शरीर में सूजन, बुखार, दर्द रहता है। त्वचा का रंग काला सा दिखता है तथा यह मोटी और खुजली युक्त हो जाती है।

आयुर्वेद में इसके इलाज़ के लिए नित्यानंद रस Nityanand Ras का प्रयोग किया जाता है।

Common names: Lymphatic filariasis, Elephantiasis

फीलपाँव कैसे फैलता है?

यह रोग मच्छर के काटने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। मच्छर जब ऐसे व्यक्ति को काटता है जिसे फीलपाँव है, तो इस मच्छर में बहुत ही सूक्ष्म कीड़े त्वचा के माध्यम से खून के साथ चले जाते हैं और मच्छर संक्रमित हो जाता है।

जब यही मच्छर, किसी स्वस्थ्य व्यक्ति को काट लेता है तो उसे भी यह संक्रमण हो जाता है। सूक्ष्म कीड़े लसीका वाहिकाओं में वयस्कों में बदल जाते हैं ।

एक वयस्क कृमि शरीर में 5-7 साल के लिए रह सकता है। वयस्क कीड़े शरीर में मल्टीप्लाई करते है और अपनी संख्या को बहुत बढ़ा लेते हैं। यह सूक्ष्म कीड़े microfilariae खून में लाखों की संख्या में पाए जाते हैं।

संक्रमण का ख़तरा किन्हें है?

जो लोग उष्णकटिबंधीय या उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लंबे समय तक रहते हैं उन्हें इसका खतरा अधिक है। लघु अवधि में रहने या पर्यटकों में यह अधिक नहीं पाया जाता। संक्रमण का सही पता एक रक्त परीक्षण से लगता है।

फीलपाँव के लक्षण क्या हैं?

  1. बहुत से लोगों में इसके लक्षण संक्रमित होने के बावजूद नहीं देखे जाते।
  2. कुछ लोगों में इसका संक्रमण बाहरी रूप से देखा जाता है। संक्रमण के कारण लसीका प्रणाली के सही न काम करने से शरीर में तरल पदार्थ संग्रहित हो जाता है और सूजन आ जाती है। यह मुख्यतः पैरों swollen limbs (lymphoedema or elephantiasis) को प्रभावित करता है, लेकिन इसका असर स्तनों, और जननांग में भी हो सकता है।
  3. अधिकांश लोगों में संक्रमित होने के बाद कई साल बाद रोग के लक्षण बाहरी रूप से देखे जाते हैं।
  4. लसीका प्रणाली में आई कमजोरी, बीमारी से शरीर की संक्रमण से लड़ने और बचाव की क्षमता कम हो जाती हैं। प्रभावित लोगों की त्वचा और लसीका प्रणाली में और अधिक जीवाणु संक्रमण पाया जाता है जिससे त्वचा, सूजी हुई और सख्त हो जाती है। पैरों के स्सोजन और मोटा होने पर इसे फीलपांव या हाथीपाँव कहते हैं।
  5. पुरुषों में W. bancrofti डब्ल्यू बैन्क्रॉफ्टी परजीवी के कारण, अंडकोश की थैली में सूजन Hydrocele हो सकती है।
  6. फाइलेरिया संक्रमण में फेफड़े Eosinophilia के संक्रमण जैसे की खांसी, सांस की तकलीफ, और घरघराहट भी हो सकती है।

फीलपाँव का निदान कैसे होता है?

  • सक्रिय संक्रमण को पता लगाने के लिए, सूक्ष्म परीक्षण microscopic examination किया जाता है। क्योंकि इसके परजीवी रात में सक्रिय हो कर रक्त में सरकुलेट होते हैं इसलिए रक्त भी रात को ही लिया जाता है।

फीलपाँव संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है?

  • मच्छर के काटने से बचना ही रोकथाम का सबसे अच्छा तरीका है। अगर आप ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहाँ इसका फीलपाँव संक्रमण है तो
  • मच्छर दानी का प्रयोग करें।
  • लंबी आस्तीन के कपड़े और पतलून पहनें।
  • सुबह शाम त्वचा पर मच्छर से बचाने वाली क्रीम का प्रयोग करें।

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